टीकमगढ़। जिले के जतारा क्षेत्र की चंदेरा पंचायत में रहने वाले लोग देश की आजादी के चार माह बाद आजाद हुए थे। इसलिए यहां के लोगों के लिए आजादी और गणतंत्र दिवस का महत्व एक ही दिन है। यहां के लोग आजादी के लिए किए गए अतिरिक्त संघर्ष को आज भी अपने सीने में दबाए हैं।

यहां स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और क्षेत्र के लोगों का देश की आजादी के बाद भी अपने क्षेत्र के लिए आजादी का संघर्ष चार माह तक जारी रहा था। चंदेरा ग्राम पंचायत को 17 दिसंबर 1947 को कड़े संघर्ष के बाद बिट्रिश हुकूमत से आजादी मिली थी। 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों को भारत से खदेडऩे के बाद पूरे देश में आजादी का जश्न मनाया जा रहा था, लेकिन जिले की चंदेरा पंचायत में अंग्रेजी हुकूमत का प्रभुत्त बरकरार रहा।

यहां अंग्रेजों की एक टुकड़ी आजादी के बाद भी जमी रही। अंग्रेजों ने पूरी पंचायत के ग्रामीणों को अपनी बर्बरता का शिकार बनाया। उसके जुल्म से यहां सैकड़ों लोग आजादी के बाद भी गुलामी की जंजीरों में जकड़े रहे। अंग्रेजों के जुल्म से परेशान होकर निवाड़ी क्षेत्र के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. लालाराम वाजपेयी ने यहां अंग्रेजों की हुकुमत के खिलाफ बगाबत छेड़ दी।

उन्होंने चार माह तक क्षेत्र के लोगों में आजादी की लड़ाई जीतने के लिए नई जान फूंकी। गांव के किशोरीलाल चौरसिया ने बताया कि श्री वाजपेयी ने लोगों को एकजूट किया और क्षेत्र में कैंप लगाकर अपनी योजना को अंजाम दिया। इसके बाद श्री वाजपेयी के नेतृत्व में जिलेभर से आए स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और ग्रामीणों ने 17 दिसंबर को अंग्रेजों से भारत छोड़ो नारे के साथ जंग का ऐलान कर दिया। 17 दिसंबर 1947 की सुबह 8 बजे उन्होंने अंग्रेजों की टुकड़ी के साथ पंचायत के समर्रा पहाड़ क्षेत्र में लाठी, बल्लम के साथ युद्ध छेड़ दिया।

यहां अंग्रेजों की फौज में शामिल 60 से अधिक सैनिकों ने उन पर तोपों, बंदूकों और कई शस्त्रों से हमले किए। करीब 9 घंटे चले युद्ध के बाद 5 स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शहीद हुए। वहीं दर्जनों की संख्या में कांग्रेसी और क्षेत्रीय ग्रामीण घायल हुए। वहीं दूसरी ओर अंग्रेजों से 9 घंटे लड़ाई चलने के बाद अंग्रेज गांव छोड़कर भाग खड़े हुए। अंग्रेजों के भागते ही यहां लोगों की खुशी दोगुनी हो गई और लोगों ने झंडा फहराकर आजादी का जश्न मनाया। क्षेत्र को अंग्रेजों के आतंक से आजादी दिलाने में सैकड़ों की संख्या में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आजादी के गवाह बने।

इसमें नंदा कुशवाहा, कड़ोरे दलाल, ढलु दुबे, बरजोर सिंह बुंदेला, पन्ना सेठ, नंदराम मामोलिया, दयाराम शुक्ल, अजुद्धी तिवारी, सीताराम दुबे, रामसिंह पचौरा, लाल सिंह सियावनी का योगदान आज भी ग्रामीण नहीं भूल पाए हैं। गांव के लोग तब से 26 जनवरी के ही दिन आजादी की वर्षगांठ भी मनाते हैं। यहां के लोग 15 अगस्त को आजादी का जश्न औपचारिक रूप से ही मनाते हैं, लेकिन गणतंत्र की वर्षगांठ यहां के लोगों के लिए यादगार होती है।